ईश्वर को जैसा मैंने जाना है.
जो लोग भक्ति या योग नहीं करते उनका हमेशा एक ही तरह का जबाब होता है कि, भगवान हमारे दिल में है, दिखावा करने से क्या मतलब. यदि ऐसी बात है तो क्या बो भगवान् के साथ होने का अनुभव करते हैं? यदि हाँ तो सच में उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं है. और यदि नहीं करते, मैं आग्रह करूँगा इन चार में से एक काम अवश्य करें -
1. सुबह उठकर ईश्वर को गुड मोर्निंग करके तीन - चार मिनट बात कर लें.
2. स्नान के बाद कुछ देर शांत बैठ जाएँ.
3. शाम को एकांत में कुछ देर घूम लें.
4. रात में सोने से पहले सारे दिन का अच्छा -बुरा ऊपर वाले को सुना कर सो जाएँ.
मेरा अनुभव कहता है, ईश्वर का साथ का मतलब एक गहरी शांति का अनुभव है, चाहे हम किसी भी परिस्थिति में हों. मेरे सबसे अच्छे अनुभव कुछ इसप्रकार हैं -
1. रामकृष्ण मठ, बेलूर - शाम की आरती के समय खुद ईश्वर यंहा आ जाते हैं.
2. ब्रम्हाकुमारीज माउन्ट आबू - यंहा सुबह का अमृतबेला योग जिसमे मन रुई की तरह हल्का हो जाता है.
3. नालंदा सोसायटी मलेशिया - प्रत्येक शाम (8 से 8:30 ) यंहा एकांत में घूमते ही मैं विचारमुक्त हो जाता हूँ.
मुझे ऐसा लगता है "ईश्वर में विश्वास और कर्म में एकाग्रता" ही जीवन जीने की कला है. ईश्वर तत्व को जीवन में गंभीरता से नहीं सरलता से अनुभव करना चाहिए.
1. सुबह उठकर ईश्वर को गुड मोर्निंग करके तीन - चार मिनट बात कर लें.
2. स्नान के बाद कुछ देर शांत बैठ जाएँ.
3. शाम को एकांत में कुछ देर घूम लें.
4. रात में सोने से पहले सारे दिन का अच्छा -बुरा ऊपर वाले को सुना कर सो जाएँ.
मेरा अनुभव कहता है, ईश्वर का साथ का मतलब एक गहरी शांति का अनुभव है, चाहे हम किसी भी परिस्थिति में हों. मेरे सबसे अच्छे अनुभव कुछ इसप्रकार हैं -
1. रामकृष्ण मठ, बेलूर - शाम की आरती के समय खुद ईश्वर यंहा आ जाते हैं.
2. ब्रम्हाकुमारीज माउन्ट आबू - यंहा सुबह का अमृतबेला योग जिसमे मन रुई की तरह हल्का हो जाता है.
3. नालंदा सोसायटी मलेशिया - प्रत्येक शाम (8 से 8:30 ) यंहा एकांत में घूमते ही मैं विचारमुक्त हो जाता हूँ.
मुझे ऐसा लगता है "ईश्वर में विश्वास और कर्म में एकाग्रता" ही जीवन जीने की कला है. ईश्वर तत्व को जीवन में गंभीरता से नहीं सरलता से अनुभव करना चाहिए.
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